भारतीय जनता पार्टी तारादेही मंडल

भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा

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भारतीय जनता पार्टी एक राष्ट्रवादी राजनीतिक दल है जो भारत को एक सुदृढ़, समृद्ध एवं शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में विश्व पटल पर स्थापित करने के लिए कृतसंकल्प है। भारत को एक समर्थ राष्ट्र बनाने के लक्ष्य के साथ भाजपा का गठन 6 अप्रैल, 1980 को नई दिल्ली के कोटला मैदान में आयोजित एक कार्यकर्ता अधिवेशन में किया गया, जिसके प्रथम अध्यक्ष श्री अटल बिहारी वाजपेयी निर्वाचित हुए। अपनी स्थापना के साथ ही भाजपा ने अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं लोकहित के विषयों पर मुखर रहते हुए भारतीय लोकतंत्र में अपनी सशक्त भागीदारी दर्ज की तथा भारतीय राजनीति को नए आयाम दिए। कांग्रेस की एकाधिकार वाली एक-दलीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था के रूप में जानी जाने वाली भारतीय राजनीति को भारतीय जनता पार्टी ने दो ध्रुवीय बनाकर एक गठबंधन-युग के सूत्रपात में अग्रणी भूमिका निभाई है। देश में विकास आधारित राजनीति की नींव भी भाजपा ने विभिन्न राज्यों में सत्ता में आने के बाद तथा पूरे देश में भाजपा नीत राजग शासन के दौरान रखी। आज तीन दशक बाद प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में किसी एक पार्टी को देश की जनता ने पूर्ण बहुमत दिया है तथा भारी बहुमत से भाजपा नीत राजग सरकार केन्द्र में विद्यमान है।

पृष्ठभूमि

हालांकि भारतीय जनता पार्टी का गठन 6 अप्रैल, 1980 को हुआ, परन्तु इसका इतिहास भारतीय जनसंघ से जुड़ा हुआ है। स्वतंत्रता प्राप्ति तथा देश विभाजन के साथ ही देश में एक नई राजनीतिक परिस्थिति उत्पन्न हुई। गांधीजी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाकर देश में एक नया राजनीतिक षड्यंत्र रचा जाने लगा। सरदार पटेल के देहावसान के पश्चात् कांग्रेस में नेहरू का अधिनायकवाद प्रबल होने लगा। गांधी और पटेल दोनों के ही नहीं रहने के कारण कांग्रेस ‘नेहरूवाद’ की चपेट में आ गई तथा अल्पसंख्यक तुष्टिकरण, लाइसेंस-परमिट-कोटा राज, राष्ट्रीय सुरक्षा पर लापरवाही, राष्ट्रीय मसलों जैसे कश्मीर आदि पर घुटनाटेक नीति, अंतर्राष्ट्रीय मामलों में भारतीय हितों की अनदेखी आदि अनेक विषय देश में राष्ट्रवादी नागरिकों को उद्विग्न करने लगे। ‘नेहरूवाद’ तथा पाकिस्तान एवं बांग्लादेश में हिन्दू अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार पर भारत के चुप रहने से क्षुब्ध होकर डॉ श्यामा प्रसाद मुकर्जी ने नेहरु मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। इधर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ स्वयंसेवकों ने भी प्रतिबंध के दंश को झेलते हुए महसूस किया कि संघ के राजनीतिक क्षेत्र से सिद्धांततः दूरी बनाये रखने के कारण वे अलग-थलग तो पड़े ही, साथ ही संघ को राजनीतिक तौर पर निशाना बनाया जा रहा था। ऐसी परिस्थिति में एक राष्ट्रवादी राजनीतिक दल की आवश्यकता देश में महसूस की जाने लगी। फलतः भारतीय जनसंघ की स्थापना 21 अक्टूबर, 1951 को डॉ श्यामा प्रसाद मुकर्जी की अध्यक्षता में दिल्ली के राघोमल आर्य कन्या उच्च विद्यालय में हुई।

भारतीय जनसंघ ने डॉ श्यामा प्रसाद मुकर्जी के नेतृत्व में कश्मीर एवं राष्ट्रीय अखंडता के मुद्दे पर आंदोलन छेड़ा तथा कश्मीर को किसी भी प्रकार का विशेषाधिकार देने का विरोध किया। नेहरू के अधिनायकवादी रवैये के फलस्वरूप डॉ श्यामा प्रसाद मुकर्जी को कश्मीर की जेल में डाल दिया गया, जहां उनकी रहस्यपूर्ण स्थिति में मृत्यु हो गई। एक नई पार्टी को सशक्त बनाने का कार्य पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के कंधों पर आ गया। भारत-चीन युद्ध में भी भारतीय जनसंघ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा राष्ट्रीय सुरक्षा पर नेहरू की नीतियों का डटकर विरोध किया। 1967 में पहली बार भारतीय जनसंघ एवं पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नेतृत्व में भारतीय राजनीति पर लम्बे समय से बरकरार कांग्रेस का एकाधिकार टूटा, जिससे कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की पराजय हुई।

भारतीय जनसंघ का जनता पार्टी में विलय

सत्तर के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में निरंकुश होती जा रही कांग्रेस सरकार के विरूद्ध देश में जन-असंतोष उभरने लगा। गुजरात के नवनिर्माण आन्दोलन के साथ बिहार में छात्र आंदोलन शुरू हो गया। कांग्रेस ने इन आंदोलनों के दमन का रास्ता अपनाया। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन का नेतृत्व स्वीकार किया तथा देशभर में कांग्रेस शासन के विरूद्ध जन-असंतोष मुखर हो उठा। १९७१ में देश पर भारत-पाक युद्ध तथा बांग्लादेश में विद्रोह के परिप्रेक्ष्य में बाह्य आपातकाल लगाया गया था जो युद्ध समाप्ति के बाद भी लागू था। उसे हटाने की भी मांग तीव्र होने लगी। जनान्दोलनों से घबराकर इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार ने जनता की आवाज को दमनचक्र से कुचलने का प्रयास किया। परिणामत: 25 जून, 1975 को देश पर दूसरी बार आपातकाल भारतीय संविधान की धारा 352 के अंतर्गत ‘आंतरिक आपातकाल’ के रूप में थोप दिया गया। देश के सभी बड़े नेता या तो नजरबंद कर दिये गए अथवा जेलों में डाल दिए गये। समाचार पत्रों पर ‘सेंसर’ लगा दिया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित अनेक राष्ट्रवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। हजारों कार्यकर्ताओं को ‘मीसा’ के तहत गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। देश में लोकतंत्र पर खतरा मंडराने लगा। जनसंघर्ष को तेज किया जाने लगा और भूमिगत गतिविधियां भी तेज हो गयीं। तेज होते जनान्दोलनों से घबराकर इंदिरा गांधी ने 18 जनवरी, 1977 को लोकसभा भंग कर दी तथा नये जनादेश प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर एक नये राष्ट्रीय दल ‘जनता पार्टी’ का गठन किया गया। विपक्षी दल एक मंच से चुनाव लड़े तथा चुनाव में कम समय होने के कारण ‘जनता पार्टी’ का गठन पूरी तरह से राजनीतिक दल के रूप में नहीं हो पाया। आम चुनावों में कांग्रेस की करारी हार हुई तथा ‘जनता पार्टी’ एवं अन्य विपक्षी पार्टियां भारी बहुमत के साथ सत्ता में आई। पूर्व घोषणा के अनुसार 1 मई, 1977 को भारतीय जनसंघ ने करीब 5000 प्रतिनिधियों के एक अधिवेशन में अपना विलय जनता पार्टी में कर दिया।

भाजपा का गठन

जनता पार्टी का प्रयोग अधिक दिनों तक नहीं चल पाया। दो-ढाई वर्षों में ही अंतर्विरोध सतह पर आने लगा। कांग्रेस ने भी जनता पार्टी को तोड़ने में राजनीतिक दांव-पेंच खेलने से परहेज नहीं किया। भारतीय जनसंघ से जनता पार्टी में आये सदस्यों को अलग-थलग करने के लिए ‘दोहरी-सदस्यता’ का मामला उठाया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंध रखने पर आपत्तियां उठायी जानी लगीं। यह कहा गया कि जनता पार्टी के सदस्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य नहीं बन सकते। 4 अप्रैल, 1980 को जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति ने अपने सदस्यों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य होने पर प्रतिबंध लगा दिया। पूर्व के भारतीय जनसंघ से संबद्ध सदस्यों ने इसका विरोध किया और जनता पार्टी से अलग होकर 6 अप्रैल, 1980 को एक नये संगठन ‘भारतीय जनता पार्टी’ की घोषणा की। इस प्रकार भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई।

विचार एवं दर्शन

भारतीय जनता पार्टी एक सुदृढ़, सशक्त, समृद्ध, समर्थ एवं स्वावलम्बी भारत के निर्माण हेतु निरंतर सक्रिय है। पार्टी की कल्पना एक ऐसे राष्ट्र की है जो आधुनिक दृष्टिकोण से युक्त एक प्रगतिशील एवं प्रबुद्ध समाज का प्रतिनिधित्व करता हो तथा प्राचीन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति तथा उसके मूल्यों से प्रेरणा लेते हुए महान ‘विश्वशक्ति’ एवं ‘विश्व गुरू’ के रूप में विश्व पटल पर स्थापित हो। इसके साथ ही विश्व शांति तथा न्याययुक्त अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को स्थापित करने के लिए विश्व के राष्ट्रों को प्रभावित करने की क्षमता रखे।

भाजपा भारतीय संविधान में निहित मूल्यों तथा सिद्धांतों के प्रति निष्ठापूर्वक कार्य करते हुए लोकतांत्रिक व्यवस्था पर आधारित राज्य को अपना आधार मानती है। पार्टी का लक्ष्य एक ऐसे लोकतान्त्रिक राज्य की स्थापना करना है जिसमें जाति, सम्प्रदाय अथवा लिंगभेद के बिना सभी नागरिकों को राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक न्याय, समान अवसर तथा धार्मिक विश्वास एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित हो।

भाजपा ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रतिपादित ‘एकात्म-मानवदर्शन’ को अपने वैचारिक दर्शन के रूप में अपनाया है। साथ ही पार्टी का अंत्योदय, सुशासन, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, विकास एवं सुरक्षा पर भी विशेष जोर है। पार्टी ने पांच प्रमुख सिद्धांतों के प्रति भी अपनी निष्ठा व्यक्त की, जिन्हें ‘पंचनिष्ठा’ कहते हैं। ये पांच सिद्धांत (पंच निष्ठा) हैं-राष्ट्रवाद एवं राष्ट्रीय अखंडता, लोकतंत्र, सकारात्मक पंथ-निरपेक्षता (सर्वधर्मसमभाव), गांधीवादी समाजवाद (सामाजिक-आर्थिक विषयों पर गाँधीवादी दृष्टिकोण द्वारा शोषण मुक्त समरस समाज की स्थापना) तथा मूल्य आधारित राजनीति।

उपलब्धियां

श्री अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के प्रथम अध्यक्ष निर्वाचित हुए। अपनी स्थापना के साथ ही भाजपा राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हो गई। बोफोर्स एवं भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पुनः गैर-कांग्रेसी दल एक मंच पर आये तथा 1989 के आम चुनावों में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को भारी पराजय का सामना करना पड़ा। वी.पी. सिंह के नेतृत्व में गठित राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार को भाजपा ने बाहर से समर्थन दिया। इसी बीच देश में राम मंदिर के लिए आंदोलन शुरू हुआ। तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष श्री लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक के लिए रथयात्रा शुरू की। राम मंदिर आन्दोलन को मिले भारी जनसमर्थन एवं भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता से घबराकर आडवाणी जी की रथयात्रा को बीच में ही रोक दिया गया। फलतः भाजपा ने राष्ट्रीय मोर्चा सरकार से समर्थन वापस ले लिया। और वी.पी. सिंह सरकार गिर गई तथा कांग्रेस के समर्थन से चन्द्रशेखर देश के अगले प्रधानमंत्री बने। आने वाले आम चुनावों में भाजपा का जनसमर्थन लगातार बढ़ता गया। इसी बीच नरसिम्हाराव के नेतृत्व में कांग्रेस तथा कांग्रेस के समर्थन से संयुक्त मोर्चे की सरकारों का शासन देशपर रहा, जिस दौरान भ्रष्टाचार, अराजकता एवं कुशासन के कईं ‘कीर्तिमान’ स्थापित हुए।

1996 के आम चुनावों में भाजपा को लोकसभा में 161 सीटें प्राप्त हुईं। भाजपा ने लोकसभा में 1989 में 85, 1991 में 120 तथा 1996 में 161 सीटें प्राप्त कीं। भाजपा का जनसमर्थन लगातार बढ़ रहा था। श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में पहली बार भाजपा सरकार ने 1996 में शपथ ली, परन्तु पर्याप्त समर्थन के अभाव में यह सरकार मात्र 13 दिन ही चल पाई। इसके बाद 1998 के आम चुनावों में भाजपा ने 182 सीटों पर जीत दर्ज की और श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार ने शपथ ली। परन्तु जयललिता के नेतृत्व में अन्नाद्रमुक द्वारा समर्थन वापस लिए जाने के कारण सरकार लोकसभा में विश्वासमत के दौरान एक वोट से गिर गई, जिसके पीछे वह अनैतिक आचरण था, जिसमें उड़ीसा के तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री गिररिधर गोमांग ने पद पर रहते हुए भी लोक सभा की सदस्यता नहीं छोड़ी तथा विश्वासमत के दौरान सरकार के विरूद्ध मतदान किया। कांग्रेस के इस अवैध और अनैतिक आचरण के कारण ही देश को पुनः आम चुनावों का सामना करना पड़ा। 1999 में भाजपा 182 सीटों पर पुनः विजय मिली तथा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को 306 सीटें प्राप्त हुईं। एक बार पुनः श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा-नीत राजग की सरकार बनी।

भाजपा-नीत राजग सरकार ने श्री अटल बिहारी के नेतृत्व में विकास के अनेक नये प्रतिमान स्थापित किये। पोखरण परमाणु विस्फोट, अग्नि मिसाइल का सफ़ल प्रक्षेपण, कारगिल विजय जैसी सफलताओं से भारत का कद अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर ऊंचा हुआ। राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण, सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार, शिक्षा एवं स्वास्थ्य में नयी पहल एवं प्रयोग, कृषि, विज्ञान एवं उद्योग के क्षेत्रों में तीव्र विकास के साथ-साथ महंगाई न बढ़ने देने जैसी अनेकों उपलब्धियां इस सरकार के खाते में दर्ज हैं।

भारत-पाक संबंधों को सुधारने, देश की आंतरिक समस्याओं जैसे नक्सलवाद, आतंकवाद, जम्मू एवं कश्मीर तथा उत्तर पूर्व के राज्यों में अलगाववाद पर कईं प्रभावी कदम उठाए गये। राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को सुदृढ़ कर सुशासन एवं सुरक्षा को केन्द्र में रखकर देश को समृद्ध एवं समर्थ बनाने की दिशा में अनेक निर्णायक कदम उठाये गए। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी एवं उपप्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में राजग शासन ने देश में विकास की एक नई राजनीति का सूत्रपात किया।

वर्तमान स्थिति

आज भाजपा देश में एक प्रमुख राष्ट्रवादी शक्ति के रूप में उभर चुकी है एवं देश के सुशासन, विकास, एकता एवं अखंडता के लिए कृतसंकल्प है।

10 साल पार्टी ने विपक्ष की सक्रिय और शानदार भूमिका निभाई। 2014 में श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश में पहली बार भाजपा की पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनी, जो आज ‘सबका साथ, सबका विकास’ की उद्घोषणा के साथ गौरव सम्पन्न भारत का पुनर्निर्माण कर रही है। राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा लगभग 11 करोड़ सदस्यों वाली विश्व की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी बन गयी है।

26 मई, 2014 को श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ग्रहण की। मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने कम समय में ही अभूतपूर्व उपलब्धियां हासिल की हैं। उन्होंने विश्व में भारत की गरिमा को पुन:स्थापित किया, राजनीति पर लोगों के विश्वास को फिर से स्थापित किया। अनेक अभिनव योजनाओं के माध्यम से नए युग की शुरुआत की। अन्त्योदय, सुशासन, विकास एवं समृद्धि के रास्ते पर देश बढ़ चला है। आर्थिक और सामाजिक सुधार सुरक्षित जीवन जीने का मार्ग उपलब्ध करा रहे हैं। किसानों के लिये ऋण से लेकर खाद तक की नयी नीतियां जैसे प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, सॉयल हेल्थ कार्ड, आदि ने कृषि के तीव्र विकास की अलख जगायी है। ये नया युग है सुशासन का। चाहे आदर्श ग्राम योजना हो, स्वच्छता अभियान या फिर योग के सहारे भारत को स्वथ्य बनाने का अभियान, इन सभी कदमों से देश को एक नयी ऊर्जा मिली है। भाजपा की मोदी सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्किल इंडिया’, अमृत मिशन, दीनदयाल ग्राम ज्योति योजना, डिजिटल इंडिया जैसी योजनाओं से भारत को आधुनिक और सशक्त बनाने की दिशा में मजबूत कदम उठाया है। जनधन योजना, बेटी बचाओ-बेटी पढाओ, सुकन्या समृद्धि योजना जैसी अनेक योजनाएं देश में एक नयी क्रांति का सूत्रपात कर रही हैं। भाजपा सरकार ने देशवासियों को विश्व की सबसे बड़ी सामाजिक सुरक्षा योजना का उपहार दिया है।

भारतीय राजनीति में भाजपा का योगदान

राष्ट्रीय अखण्डता, कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय, कबाइली वेश में पाकिस्तानी आक्रमण के प्रतिकार, परमिट व्यवस्था एवं धारा 370 की समाप्ति व पृथकतावाद से निरन्तर संघर्ष करने वाली एकमात्र पार्टी भारतीय जनसंघ या भाजपा है, अन्यथा कश्मीर का बचना कठिन था।

गोवा मुक्ति आंदोलन, सत्याग्रह एवं बलिदान। बहुत दबाव के बाद ही सरकार ने सैनिक कार्यवाही की।

बेरुबाड़ी एवं कच्छ समझौते हमारी राष्ट्रीय अखण्डता के लिए चुनौती थे। भाजपा ने इस चुनौती का सामना किया।

आज भी देश में राष्ट्रीय अखण्डता के मुद्दे उठाना पृथकतावाद से जूझना एवं इस निमित्त समाज को निरन्तर जाग्रत रखने का काम भाजपा ही कर रही है।

देश को परमाणु शक्ति सम्पन्न कर भारत पर हमलों की हिमाकत करने वालों को अटलजी की सरकार ने सीधा संदेश दिया।

लोकतंत्रः विकास एवं रक्षा

प्रथम चरण में जब स्वतंत्रता आंदोलन के सभी नेता सत्ता पक्ष में जा बैठे थे, विपक्ष या तो था ही नहीं या राष्ट्रभक्ति से शून्य वामपंथियों के पास था तब जनसंघ ने चुनौती को स्वीकार किया तथा भारत के लोकतंत्र को भारतीय जनसंघ के रूप में सबल विपक्ष दिया। 1967 में जनसंघ दूसरा बड़ा दल बन गया था।

चुनाव सुधार के मुद्दे उठाने वाला एकमात्र राजनीतिक दल जनसंघ या भाजपा ही है। लोकतांत्रिक मर्यादाओं को हमारी पार्टी ने बल दिया और उनका उल्लंघन नहीं होने दिया।

आपातकाल के प्रतिकार की कहानी हमारी लोकतंत्रात्मक निष्ठा को पुष्ट करती है।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नेतृत्व में जो विपक्ष उभरा, वही विकल्प बनने में भी सक्षम था। श्री अटल बिहारी वाजपेयी एवं श्री नरेन्द्र मोदी भारतीय लोकतंत्र में विकल्प के नियामक हैं। भारतीय लोकतंत्र के लिए अपेक्षित अखिल भारतीय संगठन एवं नेतृत्व आज केवल भाजपा के पास है।

विचारधारा

राजनीति केवल सत्ता प्राप्त करने का साधन नहीं है। समाज को अपेक्षित दिशा में प्रगति पथ पर ले जाना भी उसका कार्य है। इसके लिये संगत दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, जो संगत विचारधारा से प्राप्त होता है। आज भारत के सभी राजनैतिक दल विचारधारा शून्यता के शिकार हैं। भाजपा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, एकात्म मानववाद तथा पंचनिष्ठाओं की संगत विचारधाराओं के आधार पर संगठन का नियमन कर रही है। शासन की नीति में भी इनका समुचित प्रतिबिम्बन होगा।

सुशासन

ध्येनिष्ठ कार्यकर्ताओं की शक्ति एवं सरकार का सुनियमन सुशासन की गारंटी है। छः साल का केन्द्रीय शासन एवं प्रदेशों में भाजपा की सरकारों ने अन्य दलों की सरकारों की तुलना में अच्छा शासन दिया है। गत तीन वर्षों से श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सकारात्मक सुशासन की प्रक्रिया तीव्र गति से चल रही है। व्यवस्थाओं की पुरानी विकृतियों का शमन करने में अभी भी कुछ वक्त लगेगा।


भाजपा एक परिवार है परिवारवादी नहीं

श्री धर्मेंद्र सिंह लोधी जी

विधायक 56 जबेरा

भारतीय जनता पार्टी

श्री सुदामा प्रसाद पटेल जी

जिला उपाध्यक्ष भारतीय किसान संघ जिला दमोह

भारतीय जनता पार्टी

श्री दीपक सुदामा पटेल जी

ऐप्स एवं वेबसाइट निर्माता और संचालक

मंडल उपाध्यक्ष भारतीय जनता युवा मोर्चा

श्री दीपेश पटेल जी

कार्यकर्ता

भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा

ठा. राहुल सिंह लोधी जी

कार्यकर्ता

भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सिद्धांतों और आदर्शों पर आधारित राजनीतिक दल है। यह किसी परिवार, जाति या वर्ग विशेष की पार्टी नहीं है। भाजपा कार्यकर्ताओं को जोड़ने वाला सूत्र है--भारत के सांस्कृतिक मूल्य, हमारी निष्ठाएं और भारत के परम वैभव को प्राप्त करने का संकल्प; और साथ ही यह आत्मविश्वास कि अपने पुरुषार्थ से हम इन्हें प्राप्त करेंगे।

भाजपा की विचारधारा को एक पंक्ति में कहना हो तो वह है ‘भारत माता की जय’। भारत का अर्थ है ‘अपना देश’। देश जो हिमालय से कन्याकुमारी तक फैला है और जिसे प्रकृति ने एक अखंड भूभाग के रूप में हमें दिया है। यह हमारी माता है और हम सभी भारतवासी उसकी संतान हैं। एक मां की संतान होने के नाते सभी भारतवासी सहोदर यानि भाई-बहन हैं। भारत माता कहने से एक भूमि और एक जन के साथ हमारी एक संस्कृति का भी ध्यान बना रहता है। इस माता की जय में हमारा संकल्प घोषित होता है और परम वैभव में है मां की सभी संतानों का सुख और अपनी संस्कृति के आधार पर विश्व में शांति व सौख्य की स्थापना। यही है ‘भारत माता की जय’।

भाजपा के संविधान की धारा 3 के अनुसार एकात्म मानववाद हमारा मूल दर्शन है। यह दर्शन हमें मनुष्य के शरीर, मन, बृद्धि और आत्मा का एकात्म यानि समग्र विचार करना सिखाता है। यह दर्शन मनुष्य और समाज के बीच कोई संघर्ष नहीं देखता, बल्कि मनुष्य के स्वाभाविक विकास-क्रम और उसकी चेतना के विस्तार से परिवार, गाँव, राज्य, देश और सृष्टि तक उसकी पूर्णता देखता है। यह दर्शन प्रकृति और मनुष्य में मां का संबंध देखता है, जिसमें प्रकृति को स्वस्थ बनाए रखते हुए अपनी आवश्यकता की चीज़ों का दोहन किया जाता है।

भाजपा के संविधान की धारा 4 में पांच निष्ठाएं वर्णित हैं। एकात्म मानववाद और ये पांचों निष्ठाएं हमारे वैचारिक अधिष्ठान का पूरा ताना-बना बुनती हैं।

(1) राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय एकात्मता: हमारा मानना है कि भारत राष्ट्रों का समूह नहीं है, नवोदित राष्ट्र भी नहीं है, बल्कि यह सनातन राष्ट्र है। हिमालय से कन्याकुमारी तक प्रकृति द्वारा निर्धारित यह देश है। इस देश-भूमि को देशवासी माता मानते हैं । उनकी इस भावना का आधार प्राचीन संस्कृति और उससे मिले जीवनमूल्य हैं। हम इस विशाल देश की विविधता से परिचित हैं। विविधता इस देश की शोभा है और इन सबके बीच एक व्यापक एकात्मता है। यही विविधता और एकात्मता भारत की विशेषता है। हमारा राष्ट्रवाद सांस्कृतिक है केवल भौगोलिक नहीं। इसीलिए भारत भू-मंडल में अनेक राज्य रहे, पर संस्कृति ने राष्ट्र को बांधकर रखा, एकात्म रखा।

(2) लोकतंत्र: विश्व की प्राचीनतम ज्ञात पुस्तक ऋग्वेद का एक मंत्र ‘एकं सद विप्राः बहुधा वदन्ति उल्लेखनीय है। इसका अर्थ है, सत्य एक ही है। विद्वान इसे अलग-अलग तरीके से व्यक्त करते हैं। भारत के स्वभाव में यह बात आ गई है कि किसी एक के पास सच नहीं है। मैं जो कह रहा हूं वह भी सही है, आप जो कह रहे हैं वह भी सही है। विचार स्वातंत्र्य (फ्रीडम ऑफ थॉट्स एंड एक्सप्रेशन) का आधार यह मंत्र है।

संस्कृत में एक और मंत्र है- ‘वादे वादे जयते तत्त्व बोध:’ । इसका अर्थ है चर्चा से हम ठीक तत्त्व तक पहुँच जाते हैं। चर्चा से सत्य तक पहुंचने का यह मंत्र भारत में लोकतंत्रीय स्वभाव बनाता है। इन दोनों मन्त्रों ने भारत में लोकतंत्र का स्वरूप गढा-निखारा है। भारतीय समाज ने इसी लोकतंत्र का स्वभाव ग्रहण किया है। लोकतंत्र भारतीय समाज के अनुरूप व्यवस्था है।

भाजपा ने अपने दल के अंदर भी लोकतंत्रीय व्यवस्था को मजबूती से अपनाया है। भाजपा संभवतः अकेला ऐसा राजनीतिक दल है, जो हर तीसरे साल स्थानीय समिति से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष तक के नियमित चुनाव कराता है। यही वजह है कि चाय बेचने वाला युवक देश का प्रधानमंत्री बना है और इसी तरह सभी प्रतिभावान लोगों का पार्टी के अलग-अलग स्तरों से लेकर चोटी तक पहुंचना संभव होता रहा है।

सत्ता का किसी एक जगह केन्द्रित होना लोकतंत्रीय स्वभाव के विपरीत है। इसीलिए लोकतंत्र विकेन्द्रित शासन व्यवस्था है। केन्द्र, राज्य, नगरपालिका और पंचायत सभी के काम और ज़िम्मेदारियां बंटी हुई हैं। सब को अपनी-अपनी जिम्मेदारियां भारत के संविधान से प्राप्त होती हैं। संविधान द्वारा मिली अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए सभी (केंद्र, राज्य, नगरपालिका और पंचायत) स्वतंत्र हैं। इसीलिए गांव के लोग पंचायत द्वारा गांव का शासन स्वयं चलाते हैं । और यही इनके चढ़ते हुए क्रम तक होता है।

लोकतंत्र के प्रति हमारी निष्ठा आपातकाल में जगजाहिर हुई। 25 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने भारत में आपातकाल घोषित कर दिया था। नागरिकों के प्रकृति-प्रदत्त मौलिक अधिकार भी निरस्त कर दिए गए थे। यहां तक कि जीवन का अधिकार भी छीन लिया गया था। तत्कालीन जनसंघ (अब भाजपा) नेताओं को जेलों में डाल दिया गया था और पार्टी दफ्तरों पर सरकारी ताले डाल दिए गए थे। अखबारों पर भी सेंसरशिप लागू हो गई थी।

लोकतंत्र के प्रति अपनी निष्ठा के कारण ही हम (यानि तत्कालीन जनसंघ के कार्यकर्ता) भूमिगत अहिंसक आंदोलन खड़ा कर सके। समाज को संगठित करके एक बड़ा संघर्ष किया। असंख्य कार्यकर्ताओं ने पुलिस का दमन, जेल यातना और काम धंधे (रोजी-रोटी) का नुकसान सहा। इसी संघर्ष का परिणाम था 1977 के आम चुनावों में जनता जनार्दन की शक्ति सामने आई और इंदिरा जी की तानाशाह सरकार धराशाई हो गई।

(3) सामाजिक व आर्थिक विषयों पर गांधीवादी दृष्टिकोण; जिससे शोषणमुक्त और समतायुक्त समाज की स्थापना हो सके: गांधीवादी सामाजिक दृष्टिकोण भेदभाव और शोषण से मुक्त समतामूलक समाज की स्थापना है। दुर्भाग्य से एक समय में, जन्म के आधार पर छोटे या बड़े का निर्धारण होने लगा, अर्थात् जाति व्यवस्था विषैली होकर छुआछूत तक पहुंच गई। भक्ति काल के पुरोधाओं से लेकर महात्मा गांधी व डॉ अम्बेडकर को इससे समाज को मुक्त कराने के लिए संघर्ष करना पड़ा। आज भी यह विषमता पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है।

यही वजह है कि अनुसूचित जाति के साथ अनेक प्रकार से भेदभाव होते हैं और उन्हें यह अहसास कराया जाता है कि वे बाकी जातियों से कमतर हैं। शिक्षित और धनवान हो जाने से भी यह विषमता दूर नहीं होती। भारतीय संविधान के रचयिता डॉ अम्बेडकर ने विदेश से पीएचडी कर ली थी। फिर भी वह जिस कॉलेज में पढ़ाते थे वहां उनके पीने के पानी का घड़ा अलग रखा जाता था। भाजपा इसे स्वीकार नहीं करती। हम मानते हैं कि सभी में एक ही ईश्वर समान रूप से विराजता है। मनुष्य मात्र की समानता और गरिमा का यह दार्शनिक आधार है। देश को सामाजिक शोषण से मुक्त कराकर समरस समाज बनाना हमारी आधारभूत निष्ठा है।

किसी एक राज्य या कुछ व्यक्तियों के हाथ में सत्ता के केन्द्रीकरण के अपने खतरे होते हैं और यह स्थिति सत्ता में भ्रष्टाचार को बढ़ाती है। लेकिन गांधीजी की मांग सही साधनों पर भरोसा करने की भी थी। उन्होंने किसी ‘वाद’ को जन्म नहीं दिया, बल्कि उनके दृष्टिकोण जीवन के प्रति एकात्म प्रयास को उजागर करते हैं।

महात्मा गांधी के दृष्टिकोण के आधार पर भाजपा भी आर्थिक शोषण के खिलाफ है और साधनों के समुचित बंटवारे की पक्षधर है। हम इस बात पर विश्वास नहीं रखते कि कमाने वाला ही खाएगा। हमारी दृष्टि में कमा सकने वाला कमाएगा और जो जन्मा है वह खाएगा। हमारा मानना है कि समाज और राज्य सबकी चिन्ता करेंगे। दीनदयालजी मनुष्य की मूल आवश्यकताओं में रोटी, कपड़ा और मकान के साथ शिक्षा और रोज़गार को भी जोड़ते थे। आर्थिक विषमताओं की बढ़ती खाई को पाटा जाना चाहिए। अशिक्षा, कुपोषण और बेरोज़गारी से एक बड़ा युद्ध लड़कर ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’’ का आदर्श प्राप्त करना हमारी मौलिक निष्ठा है। हमारे गांधीवादी दृष्टिकोण ने यह सिखाया है कि इसके लिए हमें विचार या तंत्र बाहर से आयात करने की ज़रूरत नहीं है। अपने सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर अपनी बुद्धि, प्रतिभा और पुरुषार्थ से हम इसे पा सकते हैं।

(4) सकारात्मक पंथ-निरपेक्षता एवं सर्वपंथसमभाव: एक समय पश्चिमी देशों में पोप और पादरियों का राजकाज में अत्यधिक नियंत्रण हो गया था। अगर कोई अपराध करता था तो चर्च में एक निर्धारित राशि का भुगतान करके वह अपराधमुक्त होने का प्रमाण पत्र ले सकता था। नतीजा यह हुआ कि शासन में धर्म के असहनीय हस्तक्षेप का विरोध शुरू हो गया। विरोधियों का तर्क था कि धर्म घर के अंदर की वस्तु है। इस विरोध आन्दोलन से धर्मनिरपेक्षता का प्रादुर्भाव हुआ।

भारत में धर्म किसी पुस्तक, पैगम्बर या पूजा पद्धति में निहित नहीं है। हमारे यहाँ धर्म का अर्थ है जीवन शैली। अग्नि का धर्म है दाह करना और जल का धर्म है शीतलता। राजा को कैसे रहना और व्यवहार करना है यह है उसका राज-धर्म, पिता की क्या ज़िम्मेदारियां हैं, उसे क्या करना चाहिए, यह है पितृ-धर्म। इसी तरह पुत्र-धर्म और पत्नी-धर्म हैं। इसीलिए भारत में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ धर्म से निरपेक्ष हो जाना नहीं है।

भारत में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ सर्व पंथ समादर भाव है। शासक किसी पंथ को, किसी भी पूजा पद्धति को राज-पंथ, राज-धर्म या राज-पद्धति नहीं मानेगा। वह सभी धर्मों, पंथों एवं पद्यतियों को समान आदर देता है। हमारा उद्देश्य है, न्याय सबके लिए और तुष्टिकरण किसी का नहीं। इसका व्यावहारिक अर्थ है ‘सबका साथ सबका विकास’। हमारे प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि हिन्दओं को मुसलमानों से और मुसलमानों को हिन्दुओं से नहीं लड़ना है, बल्कि दोनों को मिल कर गरीबी से लड़ना है।

(5) मूल्य आधारित राजनीति: भाजपा ने जो पाचंवा अधिष्ठान अपनाया है वह है ‘मूल्य आधारित राजनीति’। एकात्म मानववाद मूल्य आधारित राजनीति पर विश्वास करता है। नियमों और मूल्यों के निर्धारण के वायदे के बिना राजनीतिक गतिविधि सिर्फ निज स्वार्थपूर्ति का खेल है। भाजपा ‘मूल्य आधारित राजनीति’ के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है और इस तरह सार्वजनिक जीवन का शुद्धिकरण एवं नैतिक मूल्यों की पुन:स्थापना उसका लक्ष्य है।

आज देश का संकट मूल रूप से नैतिक संकट है और राजनीति विशुद्ध रूप से ताकत का खेल बन गई है। यही वजह है कि देश नैतिक ताकत के लुप्तिकरण से जूझ रहा है और मुश्किलों का सामना करने की अपनी क्षमता को खोता जा रहा है। जब हम इन पांचों निष्ठाओं की बात करते हैं तो अपने आसपास या देश में घटे कुछ ऐसे प्रसंग ध्यान में आते हैं, जिनसे लगता है कि हम हर स्तर पर पूरी तरह सभी निष्ठाओं का पालन करते हैं, यह नहीं कहा जा सकता। पर, हम यह विश्वास से कह सकते हैं कि ये निष्ठाएं हमारे लिए प्रकाश-स्तम्भ की तरह हैं। हम सबको यह प्रयत्न करते रहना ज़रूरी है कि हम अपना जीवन और अपनी पार्टी को इन निष्ठाओं के आधार पर चलाएं।

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अर्थव्यवस्था

भाजपा के शासनकाल में पूरी दुनिया में अर्थव्यवस्था में छठे स्थान से पांचवे स्थान पर पहुंचा भारत ।

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PMJDY 2022 के तहत 28 अगस्त 2014 से लेकर 2022 तक इन 8 सालों में 46 करोड से भी अधिक बैंक खाते खोले जा चुके हैं। जिनमें 1.74 लाख करोड़ रुपए जमा हैं। सीतारमण जी ने बताया है कि इस योजना की सहायता से देश के 67% ग्रामीण आबादी की पहुंच अब बैंकिंग सेवाओं तक हो चुकी है। इसके अलावा 56% महिलाओं ने भी जनधन खाते खुलवाए हैं।

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भारतीय रक्षा

रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने 7 अप्रैल, 2022 को नई दिल्ली में प्रमुख उपकरण/प्लेटफॉर्म वाली 101 वस्तुओं की तीसरी सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची जारी की। रक्षा मंत्रालय के सैन्य मामलों के विभाग की ओर से अधिसूचित यह सूची उन उपकरणों/प्रणालियों पर विशेष ध्यान केंद्रित करती है, जिन्हें विकसित किया जा रहा है और अगले पांच वर्षों में इन्हें फर्म ऑर्डरों में रूपांतरित करने की संभावना है। इन हथियारों और प्लेटफार्मों को दिसंबर, 2022 से दिसंबर, 2027 तक क्रमिक रूप से स्वदेशी बनाने की योजना है। अब इन 101 वस्तुओं की खरीदारी रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी) 2020 के प्रावधानों के अनुरूप स्थानीय स्रोतों से की जाएगी।

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भारत वैश्विक स्टार्टअप इकोसिस्टम (Startup Ecosystem) और यूनिकार्न (Unicorns) की संख्या के मामले में दुनियाभर में तीसरे स्थान पर है। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में देश में 105 यूनिकार्न हैं।12 अग॰ 2022

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वास्तव में भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था बन चुका है. जनसँख्या – 1,326,093,247. सैन्य विमान – 2,119. टैंक्स – 4,730. रक्षा बजट – 73 बिलियन US डॉलर 27 मई 2022

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हरा भरा मध्यप्रदेश कार्यक्रम

हरा भरा मध्यप्रदेश कार्यक्रम

17.09.2022.

17 सितंबर को तारादेही मंडल में मान. प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का जन्मदिन मनाया गया जिसमें समस्त भाजपा तथा भाजयुमो कार्यकर्ता तथा पदाधिकारी ने उपस्थित होकर वृक्षारोपण किया ।

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ग्राम समनापुर में मान. विधायक श्री धर्मेंद्र लोधी जी ने पहुंचकर जिनवाणी कार्यक्रम में हिस्सा लिया ।​​​​​​​​

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